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History

भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन

यूरोपीय कंपनियों का भारत से लाभ 

भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन (Bharat me European ka Aagman) का कालक्रम और महत्वपूर्ण घटनाएं, पुर्तगाली, ईस्ट इंडिया कंपनी, डच, फ्रांसीसी, डेनिश, आदि भारत में आए थे | 
आधुनिक इतिहास के शुरुआत में हम पढ़ेंगे कि भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन कैसे हुआ ? कैसे हजारों किलोमीटर दूर ही रूप से विभिन्न कंपनियां भारत की तरफ आई और व्यापार के साथ यहां पर शासन में शामिल हो गई |विभिन्न यूरोपीय शक्तियों का भारत और दक्षिण एशिया की तरफ आने का शुरुआती उद्देश्य मसालों का व्यापार था, जिसकी यूरोप में बहुत मांग थी | Source: www.examtakhindi.com.

Gurushala | 11 Mar 2022

Classroom Learning

स्त्री शिक्षा

संस्कृत में यह उक्ति प्रसिद्ध है- ‘नास्ति विद्यासमं चक्षुर्नास्ति मातृ समोगुरु:’. इसका मतलब यह है कि इस दुनिया में विद्या के समान नेत्र नहीं है और माता के समान गुरु नहीं है।’ यह बात पूरी तरह सच है। बालक के विकास पर प्रथम और सबसे अधिक प्रभाव उसकी माता का ही पड़ता है। माता ही अपने बच्चे को पाठ पढ़ाती है। बालक का यह प्रारंभिक ज्ञान पत्थर पर बनी अमिट लकीर के समान जीवन का स्थायी आधार बन जाता है। लेकिन आज पूरे भारतवर्ष में इतने असामाजिक तत्व उभर आए हैं, जिन्होंने मां-बहनों का रिश्ता खत्म कर दिया है और जो भोग-विलास की जिंदगी जीना अधिक उपयोगी समझने लगे हैं। यही कारण है कि कस्बों से लेकर शहरों की मां-बहनें असुरक्षित हैं।

 

किसी भी राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में महिलाओं की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता। महिला और पुरुष दोनों समान रूप से समाज के दो पहियों की तरह कार्य करते हैं और समाज को प्रगति की ओर ले जाते हैं। दोनों की समान भूमिका को देखते हुए यह आवश्यक है कि उन्हें शिक्षा सहित अन्य सभी क्षेत्रों में समान अवसर दिये जाएँ, क्योंकि यदि कोई एक पक्ष भी कमज़ोर होगा तो सामाजिक प्रगति संभव नहीं हो पाएगी |
 

 

भारत का प्राचीन आदर्श नारी के प्रति अतीव श्रद्धा और सम्मान का रहा है। प्राचीन काल से नारियाँ घर-गृहस्थी को ही देखती नहीं आ रहीं, अपितु समाज, राजनीति, धर्म, कानून, न्याय सभी क्षेत्रों में वे पुरुष की संगिनी के रुप में सहायक व प्रेरक भी रहीं हैं, परन्तु समय के बदलाव के साथ नारी पर आत्याचार व शोषण का आंतक भी बढ़ता रहा है । नारी पारिवारिक ढ़ाँचे की यथास्थिति से समझौता करती रही है या फिर सन्तानविहीन व बन्ध्या जीवन व्यतीत करने को मजबूर हुई है। यहाँ तक कि नारी शैक्षणिक सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक सभी स्तरों पर उपेक्षित जीवन व्यतीत करती है । जब बात शैक्षणिक शोषण की होती है तो एक ही सवाल मन में उठता है कि अगर नारी को शोषण और अत्याचारों के दायरे से मुक्त करना है तो सबसे पहले उसे शिक्षित करना होगा चूकि शिक्षा का अर्थ केवल अक्षर ज्ञान नहीं होता अपितु शिक्षा का अर्थ जीवन के प्रत्येक पहलू की जानकारी होना है व अपने मानवीय अधिकारों का प्रयोग करने की समझ होना है। शिक्षा सफलता की कुँजी है।  बिना शिक्षा के जीवन अपंग है। जीवन के हर पहलू को समझने  की शक्ति शिक्षा के द्वारा ही प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है  कि शिक्षा एक विभूति है और शिक्षित विभूतिवान। जहाँ आज समाज का एक नारी-वर्ग शिक्षित होकर समाज में अपनी एक अलग पहचान बना रहा है, परन्तु  वहाँ एक वर्ग ऐसा भी देखने को मिलता है जो आज भी अशिक्षा के दायरे में सिमट कर मूक जीवन व्यतीत कर रहा है, और सवाल यह उठता है कि उनकी स्थिति में कितना सुधार हो रहा है? हम प्रत्येक वर्ष महिला-दिवस बहुत धूमधाम और खुशी से मनाते हैं पर उस नारी-वर्ग की खुशियों का क्या जो अशिक्षा के कारण अपने मानवीय अधिकारों से वंचित महिला-दिवस के दिन भी गरल के आँसू पीती है । ऐसे समाज में पुरुष स्वयं को शिक्षित, सुयोग्य एवं समुन्नत बनाकर नारी को अशिक्षित,योग्य  एवं परतंत्र रखना चाहता है। शिक्षा के अभाव में भारतीय नारी असभ्य,अदक्ष अयोग्य एवं अप्रगतिशील बन जाती है। वह आत्मबोध से वंचित आजीवन बंदिनी की तरह घर में बन्द रहती हुई चूल्हे-चौके तक सीमित रहकर पुरुषों की संकीर्णता का दण्ड भोगती हुई मिटती चली जाती है। पुरुष नारी को अशिक्षित रखकर उसके अधिकार तथा अस्तित्व का बोध नहीं होने देना चाहता । वह नारी को अच्छी शिक्षा देने के स्थान पर उसे घरेलू काम-काज में ही दक्ष कर देना ही पर्याप्त समझता है । प्राचीन काल से ही नारी के प्रति समाज का दृष्टिकोण रहा है, ‘नारियों के लिए पढ़ने की क्या जरूरत, उन्हें कोई नौकरी-चाकरी तो करनी नहीं, न किसी घर की मालकिन बनना है ,उसके लिए तो घर ‘गृहस्थी’ का काम सीख लेना ही पर्याप्त है ।’ एक तरह से समाज की यह  विचारधारा ही  शैक्षणिक शोषण के आधार को और भी मजबूत कर देती |

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Renuka Purohit | 10 Mar 2022

Sci-Fi

क्या बल्ब का आविष्कार पहले ही हो चुका था?

बल्ब और एडिसन

यह पता लगा पाना मुश्किल है कि पहले लाइट बल्ब का आविष्कार कब हुआ। दरअसल एडिसन से काफी पहले शोधकर्ता और वैज्ञानिक परंपरागत लैंप की जगह बिजली से प्रकाशमान होने वाले लैंप की खोज में लगे रहे हैं। 19वीं सदी में आविष्कारकों ने रोशनी के लिए सुरक्षित और अधिक सुविधाजनक माध्यम की तलाश के लिए काफी काम किया। उन सबके कामों के आधार पर ही एडिसन ने लाइट बल्ब का संशोधित रूप विकसित किया और उसका पेटेंट कराया। Source: navbharattimes.indiatimes.com.

Gurushala | 09 Mar 2022

The Arts

तू शक्ति है

तू शक्ति है ,

तुझे  पता  है तू क्या मायने रखती है?

ये जो धरा पर जीवन है ना,

ये इस लिए है क्यूंकि तेरी हस्ती है ,

ये जो बस्ती है , ये यूँ है  की तू बस्ती है ,

आद्या तू , आर्ना तू,, गीता तू , गरिमा तू,

वेदों की ऋचा तू है,तुझको आदि रचती है ,

नीति तू , परिणीति तू ,

तू दीप्ति , तू भारती ,

तू शक्ति है ,

तुझे  पता  है तू क्या मायने रखती है?
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गौरव त्रिपाठी 'पथिक' | 09 Mar 2022

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