Abhishek Pratap Singh
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Posted 3 year ago

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,

बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।

अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन,

पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ।

उन्नति पूरी है तबहिं, जब घर उन्नति होय,

निज शरीर उन्नति किए, रहत मूढ़ सब कोय ।

निज भाषा उन्नति बिना, कबहुँ न ह्यैहैं सोय,

लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय ।

इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग,

तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग ।

और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात,

निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात ।

तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय,

यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय ।

विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार,

सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार ।

भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात,

विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात ।

सब मिल तासों छाँड़ि कै, दूजे और उपाय,

उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय ।

___भारतेंदु हरिश्चंद्र

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