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वर्तमान दौर में सोशल मीडिया नई पीढ़ी के जीवन का अहम हिस्सा है। यह ऐसा विशाल नेटवर्क है, जो दुनिया को आपस में जोड़े रखता है। वैश्वीकरण के इस दौर में स्वतंत्रता, समानता और मानवाधिकारों से जुड़े मुद्दों पर सोशल मीडिया में बहस क़ाबिले तारीफ़ है। सामाजिक मुद्दों से रूबरू होने का सोशल मीडिया एक बेहतरीन माध्यम है। सोशल मीडिया का सही उपयोग किसी वरदान से कम नहीं, लेकिन इसका असंयमित प्रयोग हमारे अंदर कई तरह की मानसिक समस्याओं को जन्म दे सकता है। इस कारण युवाओं में चिड़चिड़ापन, नींद न आना, चिंता, तनाव, अवसाद (डिप्रेशन), छोटी-छोटी बात में ग़ुस्सा आ जाना जैसी अनेक मानसिक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इन समस्याओं का बढ़ना युवाओं के संतुलित विकास पर गहरा असर डालता है जिसका ख़ामियाज़ा अंततः परिवार और समाज को भी भुगतना पड़ता है।
कोरोना महामारी के दौरान इसका चौतरफा प्रभाव स्पष्ट तौर पर नज़र आया जब इसने ‘आइसोलेशन’ में रह रहे लोगों और प्रियजनों को आपस में जोड़े रखा।
सकारात्मक प्रेरणा: सोशल नेटवर्क ’सहकर्मी प्रेरणा’ (Peer Motivation) का सृजन कर सकते हैं और युवाओं को नई एवं स्वस्थ आदतें विकसित करने के लिये प्रेरित कर सकते हैं। किशोर ऑनलाइन माध्यम से अपने लिये सकारात्मक रोल मॉडल भी ढूँढ सकते हैं।
किशोरावस्था ऐसा समय होता है जब युवा अपनी पहचान को संपुष्ट करने और समाज में अपना स्थान पाने का प्रयास कर रहे होते हैं। सोशल मीडिया किशोरों को अपनी विशिष्ट पहचान विकास हेतु एक मंच प्रदान करता है।
एक अध्ययन से पता चला है कि जो युवा सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त करते हैं, वे ‘बेहतर प्रगति’ (Well-Being) का अनुभव करते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और शोधकर्त्ता सोशल मीडिया का उपयोग प्रायः डेटा एकत्र करने के लिये करते हैं, जो उनके अनुसंधान में योगदान करता है। इसके अलावा, थेरेपिस्ट एवं अन्य पेशेवर लोग ऑनलाइन समुदायों के अंदर परस्पर नेटवर्क स्थापित कर सकते हैं, जिससे उनके ज्ञान और पहुँच का विस्तार हो सकता है।
सोशल मीडिया आउटलेट छात्रों को अपनी रचनात्मकता और विचारों को तटस्थ दर्शकों के साथ साझा करने और एक ईमानदार प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिये एक मंच प्रदान करते हैं। प्राप्त प्रतिक्रिया उनके लिये अपने कौशल को बेहतर ढंग से आकार देने की मार्गदर्शक बन सकती हैं, यदि वे उस कौशल को पेशेवर रूप से आगे बढ़ाना चाहते हैं।
उदाहरण के लिये, कोई फोटोग्राफर या वीडियोग्राफर अपने शॉट्स को इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर शुरुआत करता है। कई युवा पहले से ही इसमें अपना कॅरियर बना रहे हैं।
सोशल मीडिया युवाओं को उनके आत्मविश्वास और रचनात्मकता को बढ़ाने में मदद कर सकता है। यह युवाओं को विचारों की और संभावनाओं की दुनिया से जोड़ता है। ये मंच छात्रों को अपने मित्रों और अपने सामान्य दर्शकों के साथ जुड़ने के मामले में अपने रचनात्मक कौशल का प्रयोग करने के लिये प्रोत्साहित करते हैं।
मानसिक /शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएँ: कई अध्ययनों में सोशल मीडिया के उपयोग और अवसाद के बीच घनिष्ठ संबंध पाया गया है। एक अध्ययन के अनुसार, मध्यम से गंभीर अवसाद लक्षण वाले युवाओं में सोशल मीडिया का उपयोग करने की संभावना लगभग दोगुनी थी। सोशल मीडिया पर किशोर अपना अधिकांश समय अपने साथियों के जीवन और तस्वीरों को देखने में बिताते हैं। यह एक निरंतर तुलनात्मकता की ओर ले जाता है, जो आत्म-सम्मान और ‘बॉडी इमेज’ को नुकसान पहुँचा सकता है और किशोरों में अवसाद एवं चिंता की वृद्धि कर सकता है।
सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग के परिणामस्वरूप स्वास्थ्यप्रद, वास्तविक दुनिया की गतिविधियों पर कम समय व्यय किया जाता है। सोशल मीडिया फीड्स को स्क्रॉल करते रहने की आदत—जिसे ‘वैम्पिंग’ (Vamping) कहा जाता है, के कारण नींद की कमी की समस्या उत्पन्न होती है।
किशोरावस्था सामाजिक कौशल विकसित करने का एक महत्त्वपूर्ण समय होता है। लेकिन, चूँकि किशोर अपने दोस्तों के साथ आमने-सामने कम समय बिताते हैं, इसलिये उनके पास इस कौशल के अभ्यास के कम अवसर होते हैं।
वैज्ञानिकों ने पाया है कि किशोरों द्वारा सोशल मीडिया का अति प्रयोग उसी प्रकार के उत्तेजना पैटर्न का सृजन करता है जैसा अन्य एडिक्शन व्यवहारों से उत्पन्न होता है।
सोशल मीडिया दूसरों के बारे में उनके पूर्वाग्रहों और रूढ़ियों की पुन:पुष्टि का अवसर प्रदान करता है। समान विचारधारा वाले लोगों से ऑनलाइन मिलने से इन प्रवृत्तियों की वृद्धि होती है क्योंकि उनमें समुदाय की भावना का विकास होता है।
साइबरबुलिइंग इसने गंभीर समस्याएँ पैदा की हैं और यहाँ तक कि किशोरों के बीच आत्महत्या के मामलों को भी जन्म दिया है। इसके अलावा, साइबरबुलिइंग जैसे कृत्य में संलग्न किशोर मादक पदार्थों के सेवन, आक्रामकता और आपराधिक कृत्य में संलग्न होने के प्रति भी संवेदनशील होते हैं।
युवाओं को उपभोक्ताओं या भविष्य के उपभोक्ताओं के रूप में लक्षित नहीं करने के लिये उत्तरदायित्त्व का सृजन कर सोशल मीडिया को विनियमित करने के लिये एक समग्र नीति अपनाई जानी चाहिये। यह एल्गोरिदम को युवाओं के बजाय वयस्कों के प्रति अधिक अनुकूल बनाएगा।
अनुपयुक्त सामग्री के लिये सुरक्षा उपाय: सोशल मीडिया मंचों को कुछ ऐसी सामग्री की अनुशंसा करने या उसका प्रसार करने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये जिसमें यौन, हिंसक या अन्य वयस्क सामग्री (जुआ या अन्य खतरनाक, अपमानजनक, शोषणकारी, या पूरी तरह से व्यावसायिक सामग्री सहित) शामिल हैं।
डिजिटल साक्षरता: यह महत्त्वपूर्ण है कि भारत में विद्यमान ’डिजिटल डिवाइड’ को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाए, विशेष रूप से शिक्षा के क्षेत्र में। युवाओं की सुरक्षा के नाम पर नीतिगत निर्णय का परिणाम यह नहीं होना चाहिये कि वंचित पृष्ठभूमि के युवा भविष्य के अवसरों से हाथ धो बैठें।
सोशल मीडिया उपयोग को नियंत्रित करने, सदुपयोगी बनाने और सीमित करने के लिये माता-पिता, शैक्षणिक संस्थानों और समाज को समग्र रूप से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। पैरेंटल कंट्रोल फीचर के उपयोग, स्क्रीन टाइम को सीमित करने, बच्चों के साथ लगातार संवाद करने और बाह्य गतिविधियों को बढ़ावा देकर इस लक्ष्य की पूर्ति की जा सकती है।
कि ये प्रभाव उनके वयस्क व्यवहार और भविष्य के समाजों के व्यवहार को आकार प्रदान करेंगे। यह जानना दिलचस्प होगा कि बिल गेट्स और स्टीव जॉब्स जैसे तकनीकी क्षेत्र के दिग्गजों ने अपने बच्चों की प्रौद्योगिकी तक पहुँच को गंभीरता से नियंत्रित रखा था।
सभी प्रौद्योगिकियों के स्पष्ट लाभ और संभावित हानिकारक प्रभाव होते हैं। जैसा कि जीवन के अधिकांश विषयों पर लागू होता है, सोशल मीडिया के उपयोग में भी अति से बचने और उसका संतुलित उपयोग करने में ही समस्या का समाधान निहित हो सकता है।
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Comments
Excellent presentation 👌👏👏
Nice
Nice information 👌 we must focus on that students should use social media but following 👍 some limitations.
It's true am agreed with it
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