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सपनों को पंख देने के लिए शिक्षा जरूरी है. हर माता-पिता अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए अपनी जमापूंजी उसपर खर्च कर देते हैं. लेकिन शिक्षा दिनो-दिन महंगा होती जा रही है |
अगर आपके पास पैसे नहीं हैं, तो ऐसी स्थिति में आप अपने बच्चों की हायर एजुकेशन के लिए लोन ले सकते हैं. पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने एजुकेशन लोन का दायरा बढ़ाने के लिए इसकी प्रक्रिया को और आसान कर दिया है. ताकि पैसों के अभाव में बच्चों की पढ़ाई नहीं रुके. दुनिया भर में स्कूलों के करीब दो सालो से बंद होने के कारण न केवल शैक्षणिक नुकसान हुआ है, बल्कि यह भविष्य में उनकी जीवन भर की आय और आजीविका पर भी असर डालने वाला साबित होगा। आर्थिक सहयोग एवं विकास परिषद (ओईसीडी) और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के अनुसार, कक्षा एक से 12 तक के स्कूल बंद होने से इन बच्चों की जीवन भर की आय तीन से 5.6 फीसदी तक कम हो सकती है।
पूरे देश को नुकसान की बात करें तो भारत जैसे विकासशील देशों की जीडीपी में 1.5 फीसदी की अतिरिक्त गिरावट आ सकती है। अगर ये स्कूल तुरंत न खोले गए तो नुकसान कहीं ज्यादा होगा। खासकर पिछड़े-वंचित परिवारों के बच्चों की भविष्य में कमाई पर ज्यादा असर पड़ेगा। भारत में भी स्कूल जनवरी से ही बंद हैं। कई राज्यों में कॉलेज 21 सितंबर से खुल रहे हैं मगर ओईसीडी ने कहा कि जिन स्कूलों, परिवारों और बच्चों के पास ऑनलाइन शिक्षा के संसाधन नहीं है, भविष्य में उनकी आय या रोजगार पर ज्यादा असर पड़ेगा।
भारत में भी कोविड का प्रभाव एक-दो साल नहीं बल्कि लंबे समय तक रहेगा। कि बच्चों का एकेडमिक नुकसान तो है ही क्योंकि बच्चे लंबे समय बाद स्कूल आएंगे तो उन्हें शिक्षण से दोबारा जोड़ने में मुश्किलें पेश आएंगी। शारीरिक, सामाजिक और मानसिक स्तर पर भी बच्चों पर असर पड़ा है। ऐसे में पाठ्यक्रम में बदलाव लाकर, एक-दो साल की लंबी रणनीति बनाकर बच्चों की शैक्षणिक गतिविधि को सामान्य स्तर पर लाया जा सकता है।
इससे भविष्य में बच्चों के भविष्य, आजीविका या आय को होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है। सरकार, स्कूल और अभिभावकों को साथ मिलकर बेहतर तालमेल के साथ दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी। स्कूल दोबारा खुलें तो उन पर पढ़ाई को पूरा करने के लिए दोहरा दबाव न डाला जाए। देश में 70 फीसदी से ज्यादा निजी स्कूलों की आय काफी कमजोर है, ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत नए दिशानिर्देश लाए जाएं |
स्कूलिंग के इर्द-गिर्द चलती है एक अर्थव्यवस्थ। सिर्फ बच्चों के स्तर पर ही नहीं पूरी स्कूलिंग के इर्द-गिर्द एक अर्थव्यवस्था भी चलती है। बच्चों की परिवहन व्यवस्था, स्कूल में खेलकूद और अन्य आयोजन, शिक्षकों के बेहतर वेतन से उनका ज्यादा खर्च जैसी बातें अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाती हैं। सेव द चिल्ड्रेन की डिप्टी डायरेक्टर (शिक्षा) कमल गौर ने कहा कि रिपोर्ट बताती है कि पढ़ने-लिखने और सीखने की पद्धति में बड़ा बदलाव लाना होगा |
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Renuka Purohit is a teacher associated with Gurushala. Any views expressed are personal.
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