कोविड-19 की पहली लहर में भारत ने भयभीत लोगों का पलायन देखा तो वहीं 2021 में इलाज के इंतजार में बेबसी। दोनों ही मंजर हृदयविदारक व देशव्यापी थे। इस साल कोरोना वायरस के नए वैरिएंट डेल्टा ने वह प्रकोप दिखाया कि जनता हक्की-बक्की रह गई और सरकार भौंचक्की।
यह तब था जब कोविड-19 के शुरुआती दौर से ही प्रधानमंत्री बार-बार हरसंभव माध्यम से देश को आगाह करते आ रहे थे। आश्चर्य होता है कि शीर्ष नेतृत्व के इतना समझाने के बाद भी केंद्र से लेकर राज्य तक जैसे किसी को अंदाज ही नहीं था कि स्थिति इतनी गंभीर भी हो सकती है। यह कहना स्थिति को बहुत कमजोर करके आंकना होगा कि बेड से लेकर आक्सीजन तक के इंतजाम नाकाफी हुए। दरअसल संक्रमण के दुष्प्रभावों से निपटने की जो भी तैयारी थी, वह बादल फटने में छतरी से बचाव की कोशिश से अधिक बेहतर नहीं थी। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के कारण अस्पतालों में आक्सीजन उपलब्धता को लेकर विकट स्थिति उत्पन्न हुई।
राजधानी नई दिल्ली से लेकर देश के लगभग सभी राज्यों के कई छोटे-बड़े अस्पताल आक्सीजन की कमी की गुहार लगाते देखे गए और इंटरनेट मीडिया मदद की मांग करते संदेशों से भरा रहा। कहीं सिलिंडर की कमी तो कहीं आक्सीजन की। जैसे-तैसे आक्सीजन सिलिंडर मिलता तो अस्पतालों में भर्ती होने के बाद बेड भी बड़ी मुश्किल से उपलब्ध थे। मरीज गाड़ियों, आटो-टेंपो, कुर्सी आदि पर बैठकर कोरोना के खिलाफ जीवन की जंग लड़ते रहे और जिनपर जिम्मेदारी थी, वे दोषारोपण का फुटबाल खेल रहे थे। 'जो इतिहास से सबक नहीं सीखते वे इसे दोहराने को अभिशप्त होते हैं, उम्मीद करें और प्रार्थना भी कि अब जब ओमिक्रोन और डेल्मीक्रोन जैसे नए वैरिएंट दुनिया को डरा रहे हैं, एक देश के रूप में अपनी सुव्यवस्था से हम यह कथन गलत साबित कर सकें।
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Kalpana Rajauriya is a teacher and social worker. Her family too suffered from the Delta variant in the second wave. Any views expressed are personal.
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