बढ़ता भारत और चमकते भारतीय
विगत कम से कम दो दशकों के दौरान चीन ने कई उत्पादों के मामले में दुनियाभर के प्रोडक्शन हब की भूमिका निभाई है। वह सिर्फ बने बनाये उत्पाद नहीं, बल्कि कई उद्योगों के लिए कच्चे माल की भी आपूर्ति करता रहा है। कोरोना संकट के बाद चीन में अपनी इस स्थिति का भी बेजा फायदा उठाने की कोशिश की, जिससे भारत समेत दुनियाभर में कई उत्पादों के दाम बढ़े।
इसे देखते हुए दिग्गज अमेरिकी व यूरोपीय कंपनियों ने चीन से उत्पादन समेटकर उसे दुनिया के अन्य बाजारों में ले जाने की शुरूआत की, जिसका भारत पूरा फायदा उठाने की ओर बढ़ चुका है। इस वर्ष सितबर में चीन का औद्योगिक उत्पादन पिछले वर्ष फरवरी के बाद पहली बार घटा है। चीन में औद्योगिक उत्पादन घटने और कच्चे माल का दाम बढ़ने से फार्मा, आटो कम्पोनेंट और इलेक्ट्रानिक्स समेत ऐसे कई अन्य सेक्टर की उत्पादन लागत काफी बढ़ी है जो कच्चे माल के लिए चीन पर आश्रित रहे हैं।

अच्छी बात यह है कि भारत ने इसे एक चुनौती और अवसर के रूप में लिया है। सरकार ने इस वर्ष फार्मा, इलेक्ट्रानिक्स व कई अन्य सेक्टर के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन यानी पीएलआइ स्कीम लांच कर आत्मनिर्भरता की ओर मजबूती से कदम बढ़ाया है। हालांकि इसका पूरा असर दिखने में शायद एक दशक या उससे भी अधिक का समय लग जाए, लेकिन कई मामलों में अंतरराष्ट्रीय बाजार के उत्पादन हब के रूप में चीन के वर्चस्व के आखिरी वर्षों की बुनियाद रखी जा चुकी है।
इसलिए हम कह सकते हैं कि यह बढ़ता भारत है ।
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Kalpana Rajauriya is a teacher and a social worker. Any views expressed are personal.