हो श्रेष्ठ संगम तीनों का जिस जहाँ में आज ,
सभ्य होने का पा सकता है वही अधिकार आज -
हो जिस देश में इन तीनों का सम्मिलन
है क्षमता रखते वही कुछ करने का नया निर्माण।
प्रश्न उठता है अब ये एक , किस तरह यह तीनों चीजें हैं श्रेष्ठ -
कुछ मिलती-जुलती है इन तीनों की काया
परंतु अपने आप में है इनमें बहुत कुछ समाया।
अर्थ है साहित्य का स - हित हो जहाँ सबका हित
हो जिस देश का साहित्य सुंद,र पैदा कर सकता है वही जागृति लोगों के अंदर
हो जिस देश की संस्कृति सुंदर ,पैदा कर सकती है वही-
कला अभिरुचि लोगों के अंदर।
हो जिस देश का समाज सुंदर ,पैदा कर सकता है
वही मानवीय गुण लोगों के अंदर।
कुछ अलग होते हुए भी यह तीनों है अपने आप में बिल्कुल अभिन्न
हो अगर अभाव इन तीनों में से किसी भी एक का
है भय उस देश के टूट के बिखर जाने का।
है आवश्यक सामंजस्य इन तीनों में ,छोड़ पाओगे तभी -
कोई अमिट छाप इस जग में।
अवश्य जानना चाहेंगे आप -जो बनाते हैं किसी भी देश को महान -
जी हाँ बिल्कुल वह हैं उस देश की साहित्य ,संस्कृति और समाज।
About the author
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कुमुद पाठक एक शिक्षिका हैं । उन्हें १८ साल से अध्यापन क्षेत्र में पढ़ाने का अनुभव है। वह स्वरचित पठन एवं लेखन में रूचि रखती हैं । व्यक्त किए गए कोई भी विचार व्यक्तिगत हैं। |