Dear Diary

प्रकृति के तीन गुण: सत्व , रजस , तमस

“सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में है ना ही कहीं और...”
                                                                                                                              ~श्रीमद भगवद गीता


प्रकृति अर्थात प्र = विशेष और कृति = किया गया।


स्वाभाविक की गई चीज़ नहीं । लेकिन विभाव में जाकर विशेष रूप से की गई चीज़ वही प्रकृति है ।


गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि इस सृष्टि की रचना मूल रूप से तीन गुणों से हुई है । ये तीन गुण सत्व , रजस और तमस हैं । हालांकि आधुनिक विज्ञान आज भी इससे अनजान है । परंतु धार्मिक मान्यता है कि ये तीनों गुण सजीव , निर्जीव , स्थूल और सूक्ष्म वस्तुओं में रहते हैं । भगवान अर्जुन को बताते हैं कि “यह मूल प्रकृति ही संसार की समस्त वस्तुओं को उत्पन्न करने वाली है और मैं ही ब्रह्म (आत्मा) रूप में चेतन रूपी बीज को स्थापित करता हूँ ।“


इस जड़ चेतन के सहयोग से ही सभी चर - अचर प्राणियों की उत्पत्ति होती है । साथ ही समस्त योनियों में जो भी शरीरधारी प्राणी उत्पन्न होते हैं , उन सभी को धारण करने वाली आत्मा रूपी बीज को स्थापित करने वाला पिता हूँ । सात्विक , राजसिक और तामसिक यह तीनों गुण भौतिक प्रकृति से उत्पन्न होते हैं। इन तीनों के बिना किसी वास्तविक पदार्थ का अस्तित्व संभव नहीं है । किसी भी पदार्थ में इन तीनों गुणों के न्यूनाधिक प्रभाव के कारण उसका चरित्र निर्धारित होता है । प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुणों के कारण ही अविनाशी आत्मा शरीर से बंध जाती है । पुरुष प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुणों के भोगता है और इन गुणों का साथ ही इस जीवात्मा को अच्छी - बुरी योनियों में जन्म लेने का कारण बनता है ।


सत्वगुण का अर्थ “पवित्रता” तथा “ज्ञान” है । सत्व अर्थात अच्छे कर्मों की ओर मोड़ने वाला गुण है ।तीनों गुणों में सर्वश्रेष्ठ गुण सत्व गुण ही है । एक सात्विक व्यक्ति हमेशा वैश्विक कल्याण के निमित्त काम करता है । हमेशा मेहनती और सतर्क होता है । एक पवित्र जीवन यापन करता है । सच बोलता है और साहसी होता है । सत्वगुण अधिक शुद्ध होने के कारण पाप कर्मों से जीव को मुक्त करके आत्मा को प्रकाशित करने वाला होता है , जिससे मनुष्य सुख और ज्ञान से अभिभूत होता है । भगवान श्री कृष्ण कहते हैं जब कोई मनुष्य सतोगुणी होने पर मृत्यु को प्राप्त होता है तब वह उत्तम कर्म करने वाला स्वर्ग लोक में जाता है ।


रजस के अर्थ “क्रिया” तथा “इच्छाएं” है । राजसिक व्यक्ति स्वयं के लाभ एवं कार्यसिद्धि हेतु जीता है । जो गति पदार्थ के निर्जीव और सजीव दोनों ही रूपों में देखने को मिलती है वह रजस के कारण ही मिलती है । निर्जीव पदार्थों में गति और गतिविधि , विकास और ह्रास रजस का परिणाम है । वहीं जीवित पदार्थों में क्रियात्मक , गति की निरंतरता और पीड़ा रजस के परिणाम हैं । रजोगुण के बढ़ने पर लोभ उत्पन्न होने के कारण फल की इच्छा से कार्यों को करने की प्रवृत्ति और मन चंचलता के कारण विषय - भोगों को भोगने की इच्छा बढ़ने लगती है । साथ ही जब कोई मनुष्य रजोगुण की वृद्धि होने पर मृत्यु को प्राप्त करता है तब वह रजोगुण के बीच स्थिति पृथ्वी लोक में ही रह जाता है । रजोगुण में किये गए कार्य का परिणाम दुखद होता है ।


तमस का अर्थ “अज्ञानता” तथा “निष्क्रियता” है । तामसिक मनुष्य दूसरों को अथवा समाज को हानि पहुँचाकर स्वयं का स्वार्थ सिद्ध करता है । इस गुण के कारण व्यक्ति आलस्य , प्रमाद और निद्रा में बंध जाता है । तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढंककर प्रमाद में बांध देता है । जब मनुष्य के अंदर तमोगुण की वृद्धि होती है तब अज्ञान रूपी अंधकार कर्तव्य को न करने की प्रवृत्ति , पागलपन की अवस्था और आलस्य के कारण ना करने योग्य कार्य को करने की प्रवृत्ति बढ़ने लगती है । तमोगुण की वृद्धि हाने पर मृत्यु को प्राप्त मनुष्य पशु - पक्षियों आदि नीच योनियों में नरक को प्राप्त होता है ।


जय श्री कृष्ण!

About the author

Sunita Srivastava is a Science Teacher of the Junior Section in the Basic Education Department. She is currently posted in K.P.M.V Oel, Behjam, Lakhimpur-Kheri. Any views expressed are personal.

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