Study Spot
Customized learning paths based on interests
घर के आँगन में बैठी चुपचाप निहार रही थी,
निस्तब्ध भाव से उसे -गगन के उस चाँद को-
चुपचाप एक कोने में खड़ा जो मुझसे कुछ कहना चाहता हो -
मगर डरता है -कहने से कुछ बातें अपनी,
मैली ना हो जाए कहीं उसकी यह सफेद चाँदनी ।
मुक्त भाव से बहुत कुछ कह दिया उसने मुझसे -
जो समझ ना सकी थी उस समय मैं ,
किंतु समझ गई हूँ आज -
शायद वह कहना चाहता है मुझसे -
नहीं आवश्यकता आज लोगों को उसकी शीतल चाँदिनी की ,
क्योंकि वे तो हो चुके हैं आदि- हिंसा के आग में जलने की, शोलों पर चलने की, तूफ़ाँ में घिरने की ,अहंवादिता सहने की ,लड़ने और मरने की ,
नहीं बुझती है आग अब उनकी शीतल चाँदिनी से -
बुझती है आग अब तो केवल रक्त के ही पान से।
सुनो !नहीं आवश्यकता अब लोगों को मेरी शीतल चाँदिनी की। ...
नहीं दे सकता खुशी उन्हें ,अब मैं क्षण भर को भी -
यही प्रतिध्वनि उस निराकार व्योम में मैनें सुनी -
मैं हूँ अकेला- मैं हूँअकेला -मैं हूँ अकेला
है बहुत कुछ साम्य मुझमें और गगन के उस चाँद में -
जो कुछ ना कहकर भी ,जैसे बहुत कुछ कह गया हो मुझसे।
About the author
![]() |
कुमुद पाठक एक शिक्षिका हैं । उन्हें १८ साल से अध्यापन क्षेत्र में पढ़ाने का अनुभव है। वह स्वरचित पठन एवं लेखन में रूचि रखती हैं । व्यक्त किए गए कोई भी विचार व्यक्तिगत हैं। |
Comments
शानदार प्रयास।
Recommended by Gurushala
Technology & Innovation
-By Valentina MilanovaHow Content Rephrasing is Useful for Students and Teachers? 3 Free Tools
Stories of Indian Classrooms
-By GurushalaOn the course of continuous learning- An inspiring teacher story from Pune
Related Articles