ज़िन्दगी की हर राह में ,
धूप में , छाँव में ,
सुख में , दुःख में ,
या ,जब कभी मैं चुप होता हूँ ,
अब मैं कहता नहीं कुछ ,
बस, लिख लेता हूँ !
हास में , विनोद में,
प्रेम में, प्रमोद में,
विशेष में , अमोघ में ,
या, जब कभी मैं खुश होता हूँ ,
अब मैं कहता नहीं कुछ ,
बस, लिख लेता हूँ !
रीत में , प्रीत में,
रीस में , टीस में,
प्रत्यक्ष में, परोक्ष में,
या ,जब कभी मैं लुप्त होता हूँ,
अब मैं कहता नहीं कुछ ,
बस, लिख लेता हूँ !
गर्व में , अभिमान में ,
सफलता के आसमान में ,
बात के सम्मान में ,
या, जब कभी , में कुछ खोता हूँ ,
अब मैं कहता नहीं कुछ ,
बस, लिख लेता हूँ !
About the author
गौरव त्रिपाठी 'पथिक' एक कॉर्पोरेट कर्मचारी हैं जिनका रुझान कविता लेखन की और है। 'पथिक चिट्ठा' नामक उनका ब्लागस्पाट पर पेज है जहाँ वह अपनी लिखी कविताएँ पोस्ट करते हैं। व्यक्त किये गए कोई भी विचार उनके अपने हैं।