ये ज़िन्दगी बहुत लंबी है मेरे दोस्त
बस थोड़ा थक गया हूं
रुका ज़रूर हूं कुछ पल के आराम को
लेकिन मैं अभी हारा तो नहीं
चल ही तो रहा था कब से
एक मंज़िल की तलाश में
मंजिल का शायद मुझे इल्म नहीं
लेकिन मैं मुसाफिर आवारा नहीं
आज ठिकाना यहां है मेरा
कल ठिकाना कहीं और हो शायद
यहां से वहां भटकता ज़रूर हूं
लेकिन मैं कोई बंजारा नहीं
मैं आज भी उसी आसमां पे हूं
मेरी रोशनी कुछ धुंधलाई ज़रूर है
टूट कर मेरे बिखरने की फरियाद करते हो
लेकिन मैं वो तारा नहीं
गर्दिश से उठकर मेरी उड़ान उस आसमां तक होगी
गर्दिश से उठकर मेरी उड़ान उस आसमां तक होगी
क्यूंकि रुका ज़रूर हूं कुछ पल के आराम को
लेकिन मैं अभी हारा तो नहीं
About the author
Neetu Bartwal is working in Pratham Education Foundation and works on aspects of Content Creation for the teacher capacity development portal: Gurushala. Any views expressed are personal.