इन रास्तों से जाने कितनी ही बार गुजरें हैं हम
हम तो जाने कितने बदल बदल से गए
पर रास्तें वैसे के वैसे दरख्त खड़े होकर कभी हमें सलाम करते थे
पर वो भी आज हमारी तरह बस कट कट से गए
गनीमत है कि नदी ने अब तक हमसे मुँह ना मोड़ा
पर गुनाहगार तो हैं हम उसके
भी शान से खड़ी वो चट्टानें सर कटाकार अब भी झुकीं नहीं,
मुझे शर्मिंदा करती उन चट्टानों की किरचें !
जो मेरे रोम-रोम को अपने सफेद खून से घायल करती
उस सफेद खून से मिलकर भी मेरा खून काला ही रह गया
क्योंकि मेरी भीरू आत्मा उन ढीठ रास्तों की गुलाम हैं
रास्तें पाओ से लगकर भी मुझपर हावी हैं
मुझे मंज़िल तक पहुचाने की एवज़ में
मेरी सांसो की कीमत लगा रहें हैं
बोली ज़ोरो शोरो पर चल रही हैं,
और ये रास्ते और चौड़े होकर मेरा माखौल उड़ा रहे हैं
हम बिक रहे हैं बिक चुके हैं और ज़्यादा से ज़्यादा क्या बिकेंगे!!!
About the author
Rumy Sarkar is a Science teacher from Saraswati Shishu Vidya, Kumhartoli Mandir, Jharkhand. Any views expressed are personal.